विज्ञान के किसी स्थापित हो रहे सत्य को आप असत्य सिद्ध करने के लिए जान लगा
दें और नोबल पुरस्कार पा जाएँ...
ढेरों लोग समझते हैं कि एल्बर्ट आइंस्टाइन को नोबल पुरस्कार उनके सापेक्षता के
सिद्धांत के लिए मिला था। जबकि वास्तविकता यह है कि आइंस्टाइन ने इसे
फोटोएलेक्ट्रिक या प्रकाश-विद्युत् प्रभाव के लिए पाया था। प्रकाश को किसी
पदार्थ पर डाला जाए, तो उससे उस पदार्थ के एलेक्ट्रॉन निकल सकते हैं।
आइंस्टाइन से पहले मुख्य धारा की भौतिकी मानती आई थी कि प्रकाश एक तरंग है।
अगर मैं आपसे पूछूँ कि प्रकाश क्या है, तो आप भी संभवतः तरंग ही कहेंगे।
प्रकाश कणों की बमबारी है, यह सोचने में थोड़ा जोर पड़ता है आम दिमाग पर। फिर यह
सोचना तो सामान्य आदमी के लिए आज भी मुश्किल है, कि प्रकाश कण और तरंग, दोनों
हो सकता है। आइंस्टाइन ने यही कहा। प्रकाश न केवल तरंग है और न केवल कण। वह
दोनों है। कहीं वह कणवत् आचरण करता है, कहीं वह तरंगवत्। फोटोएलेक्ट्रिक
प्रभाव में वह कणवत् आचरण करता है; इस प्रभाव को तभी समझा जा सकता है।
लेकिन ढेरों वैज्ञानिक उस समय आइंस्टाइन के प्रयोग और मत से सहमत नहीं थे।
इन्हीं में से एक नाम था रॉबर्ट मिलीकैन का। उन्हें विश्वास था आइंस्टाइन से
चूक हुई है और वे उन्हें गलत साबित कर ही देंगे। इसके लिए मिलीकैन ने अपने
प्रयोग किए। पूरी कोशिश की कि आइंस्टाइन असत्य सिद्ध हों। लेकिन वे उलटे
आइंस्टाइन को सत्य सिद्ध कर गए। यानी उनके प्रयोगों ने यही सिद्ध किया कि
फोटोएलेक्ट्रिक प्रभाव में प्रकाश कणों के रूप में ही काम करता है।
मिलीकैन ने इतना ही नहीं किया। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि एक एलेक्ट्रॉन पर
आवेश (चार्ज) कितना होता है। यह उनका प्रसिद्ध तेल की बूँद का प्रयोग था।
उन्होंने पाया कि आवेश की मात्रा प्रत्येक एलेक्ट्रॉन पर नियत है; उससे
कम-ज्यादा नहीं हो सकती। तेल की बूँदों पर जितने एलेक्ट्रॉन सामान्य से अधिक
होंगे, उतना आवेश बढ़ता जाएगा।
वे क्वांटम-भौतिकी के आरंभिक दिन थे। प्रकाश कणों के पैकेटों के रूप में
पदार्थ पर पड़ता है और फिर पदार्थ से फलस्वरूप एलेक्ट्रॉन निकलते हैं, यह बात
नई थी। एक एलेक्ट्रॉन पर मनमाना आवेश नहीं हो सकता - उसकी मात्रा निश्चित है -
यह भी नवीन जानकारी थी।
मिलीकैन को उनके इन कामों के लिए 1923 में नोबल पुरस्कार दिया गया। आप सही को
गलत सिद्ध करने के प्रयास में अगर उसकी पुष्टि कर जाएँ, तो आप भी नोबल जीत
सकते हैं। इतनी उदारता सिर्फ विज्ञान में है।